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आ वा॑जा या॒तोप॑ न ऋभुक्षा म॒हो न॑रो॒ द्रवि॑णसो गृणा॒नाः। आ वः॑ पी॒तयो॑ऽभिपि॒त्वे अह्ना॑मि॒मा अस्तं॑ नव॒स्व॑इव ग्मन् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vājā yātopa na ṛbhukṣā maho naro draviṇaso gṛṇānāḥ | ā vaḥ pītayo bhipitve ahnām imā astaṁ navasva iva gman ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। वा॒जाः॒। या॒त॒। उप॑। नः॒। ऋ॒भु॒क्षाः॒। म॒हः। न॒रः॒। द्रवि॑णसः। गृ॒णा॒नाः। आ। वः॒। पी॒तयः॑। अ॒भि॒ऽपि॒त्वे। अह्ना॑म्। इ॒माः। अस्त॑म्। न॒व॒स्वः॑ऽइव। ग्म॒न् ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:34» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋभुक्षाः) उत्तम गुणों से बड़े (वाजाः) ब्रह्मचर्य्य को प्राप्त (महः) आदर करने योग्य (नरः) नायक ! (द्रविणसः) यशरूप धन की (गृणानाः) स्तुति प्रशंसा करते हुए आप लोग (नः) हम लोगों के (उप, आ, यात) समीप प्राप्त हूजिये और (अह्नाम्) दिनों की (अभिपित्वे) प्राप्ति होने में (इमाः) यह प्रत्यक्ष (पीतयः) जो पान हैं वह (अस्तम्, नवस्वइव) जैसे नवीन सुखवाला घर को प्राप्त होता है, वैसे (वः) आपको (आ, ग्मन्) प्राप्त हों ॥५॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को चाहिये कि ऐसी इच्छा नित्य करें कि हम लोगों को यथार्थवक्ता विद्वान् लोग प्राप्त होवें और दिन-रात्रि ऐश्वर्य्य की प्राप्ति होवे। जैसे नवीन विवाहाश्रम का सेवन करते हैं, वैसे ही स्त्री और पुरुष गृह के कृत्यों का सेवन करें ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे ऋभुक्षा वाजा महो नरो ! द्रविणसो गृणाना यूयं न उपायाताह्नामभिपित्व इमाः पीतयोऽस्तं नवस्वइव व आग्मन् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (वाजाः) प्राप्तब्रह्मचर्य्याः (यात) प्राप्नुत (उप) (नः) अस्मान् (ऋभुक्षाः) सद्गुणैर्महान्तः (महः) पूजनीयाः (नरः) नेतारः (द्रविणसः) यशोधनस्य (गृणानाः) स्तुवन्तः (आ) (वः) युष्मान् (पीतयः) पानानि (अभिपित्वे) प्राप्तौ (अह्नाम्) दिनानाम् (इमाः) प्रत्यक्षाः (अस्तम्) गृहम् (नवस्वइव) यथा नवीनसुखः (ग्मन्) प्राप्नुवन्तु ॥५॥
भावार्थभाषाः - सर्वैमनुष्यैरियमाशीर्नित्या कर्त्तव्यास्मानाप्ता विद्वांसः प्राप्नुताऽहर्निशमैश्वर्य्यप्राप्तिर्भवेद् यथा नूतना विवाहाश्रमं सेवन्ते तथैव स्त्रीपुरुषा गृहकृत्यानि सेवेरन् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसांनी नित्य अशी इच्छा करावी की, आम्हाला आप्त विद्वान लोक प्राप्त व्हावेत व रात्रंदिवस ऐश्वर्याची प्राप्ती व्हावी, जसे नावीन्याने गृहस्थाश्रमाचा स्वीकार केला जातो तसेच स्त्री-पुरुषांनी गृहकृत्याचा स्वीकार करावा. ॥ ५ ॥